एन.के.मिश्रा
लखीमपुर-खीरी। जनपदवासियों को पिछले कई दशकों से सांप्रदायिक सौहार्द का पाठ पढ़ा रहे मुन्ने मियां बीमारी से जूझते हुए इस दुनिया से रुखसत हो गए। मंगलवार की सुबह करीब 5:00 बजे उनके इंतकाल की खबर लगते ही, हिन्दू मुस्लिम सभी की आंखे नम हो गई।
बताते चले कि बीते करीब 65 वर्षों से रामलीला के पात्रों की पोशाक बनाने उन्हें सजाने का कार्य करने वाले मुन्ने मियां को पिछले वर्ष फालिज का अटैक पड़ गया था, जिससे वह उभर नहीं सके, और मंगलवार को वह इस दुनिया से रुखसत हो गए। इस्लाम धर्म के अनुयाई मुन्ने मियां ने सदैव ही सभी धर्मों का सम्मान किया। जिसकी सबसे बड़ी मिसाल यही है कि नगर में होने वाली ऐतिहासिक रामलीला में वे न ही सिर्फ पात्रों के कपड़े सिलते थे, बल्कि बड़े ही भक्ति भाव से कपड़ों पर कारीगरी का काम भी करते थे।
मुन्ने मियां मथुरा भवन से रामलीला मैदान तक पात्रों के साथ जाते भी थे। जब रामलीला शुरू होती है तो आयोजकों को हर बार मुन्ने मियां याद आते थे। क्योंकि मुन्ने मियां पिछले 65 वर्षों से रामलीला के माध्यम से सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बने हुए थे। वे श्री राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, गुरु वशिष्ठ, राजा दशरथ, देवऋषि नारद, लंकापति महाराज रावण, कुंभकरण, मेघनाथ और सभी पात्रों के कपड़े ही तैयार नहीं करते बल्कि कपड़ों पर उनकी कारीगरी भी झलकती थी। वह कपड़ों पर खूबसूरत डिजाइन बनाते थे वह देखते ही बनता था।
फालिज के अटैक के बाद जब मुन्ने मियां के हाथ पैरों ने काम करना बंद किया तो उनके भतीजे अली अहमद ने उनका काम संभाला है। जनपद सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल मुन्ने मियां सदैव ही लोगों को याद आते रहेंगे।